देखो न दिसंबर और जनवरी का रिश्ता,
कहाँ किसी और में है कभी भी मिलता,
न दोनो के मिलन की कोई भी आस है,
फिर भी एक दूजे से ये खूब है जुड़ता।
एक ने जिंदगी के तजुर्बे को पाया है,
एक पर उम्मीदों ने डेरा अपना जमाया है,
एक ही दिन की दूरी दोनों के बीच में,
फिर भी कहाँ वे एक दूजे को अपनाए हैं ।
एक में कुछ अधूरा रह जाने का अफसोस है,
एक में कुछ नए को पूरे करने का जोश है,
एक में बिछोह का गम दिखता है कभी,
एक नये सपने को पाने के लिए मदहोश है।
ये दिसंबर जनवरी का जो गहरा नाता है,
इसको समझ कहाँ कोई भी बोलो पाता है,
एक में आश्वस्तता है चलो ये चला गया,
एक में उमंग है आने वाला हो खुशियों भरा।
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