प्रकृति कर रही हमसे गुहार,
न छेड़ो तुम हमें यूँ बार बार,
अपने लाभ के लिए न छेड़ो,
वरना मचेगा चौतरफा हाहाकार।
पहाड़ों को काट राह है बनाई,
जंगल काटे बस्तियाँ है बसाई,
स्वार्थ वश नदियों में बाँध बाँधे,
कंक्रीट से धरा को है सजाई।
प्रदूषित वायु जल को है किया,
प्राणवायु को खतरे में किया,
व्यर्थ का जल को बहाकर के,
जल संकट भी खड़ा है किया।
प्रकृति दे रही हमें ये चेतावनी,
न करो संसाधनों का दुरूपयोग।
सोच समझकर करो उपयोग,
फिर प्रकृति का मित्रता संग योग।
पशुओं के आवास को उजाड़ा,
पंछियों के कलरव को रोका,
नदियों के धारा को है मोड़ा,
कितने ही असंतुलन को बुलाया।
हे मानव अब तुम सम्भल जाओ,
प्रकृति के संग मित्रता को निभाओ,
प्रकृति के सान्निध्य में रहकर ही,
हर विपदा को तुम दूर भगाओ।
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