मुझे याद है वो बारिश का मौसम
हमदोनों बहाते थे कागज की नाव,
बेवजह की उम्मीदों की पाल बांधे
नादान सपनों की पानी की सतह पर,
कितने शानदार थे हमारे वो दिन
जब हमारी नाव बहती थी सीमा से परे,
उस किनारे की ओर जो कहीं था ही नहीं
फिर भी बहते जाना हमारी किस्मत थी
तुम्हें डूबना पसंद था और मुझे तैरना।
तुम्हारे नाव का डूबना तुम्हारी पूर्णता थी
और मेेरे नाव का तैरना मेरा बचपना,
फिर भी तुमको जरा भी गुमान ना था
और मुझे भी अफसोस नहीं होता था,
क्या नजारा था जब दो नाव बहती थी
एक होकर, एक मंज़िल की ओर,
हमें इंतजार रहता बारिश के मौसम का
हमने साथ ना जाने कितनी नाव बनाई,
कितनी बारिश आई और पानी बहा
हमने साथ बहने का सिलसिला जारी रखा।
फिर मौसम बदलने लगा और बारिश भी
अब बारिश में नहीं मिलती सौंधी खुशबू,
अब नाव भी ना बहती थी, ना डूबती थी
हमदोनों को अब तैरकर जीतना पसंद था,
तुम डूबने से डरने लगी और मैं हारने से
हमदोनों अब मंजिल की फिक्र करने लगे थे,
बारिश भी अब काफी बदली-बदली थी
पक्की फर्श पर उम्मीदों की नाव गुम हो गई,
सारे सपने पानी के साथ कहीं बह गए
बस रहा गीली मिट्टी पर तुम्हारे पांव के निशान,
मेरे हाथों की लकीरों में गुम हुए नाव के निशान।
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