रंग बिरंगे पतंगों की तरह रहे है जिंदगी,
ईश्वर से सदा ही करूँ मैं बस यही बंदगी,
आसमान की ऊँचाई तक उड़ान ले जाऊँ
संस्कारों के डोर से बंधी हो सभी रवानगी।
एक दूसरे से न उलझे स्वतंत्र उड़ान पाये,
उलझे जो अगर कभी तो डोर कटती जाये,
हवा के रूख की तरह वक़्त को मैं समझूँ,
तभी ऊँचा उठने का प्रयास हम कर पाये।
हसरतों की ऊँची उड़ान हो आनंद पाऊँ,
ऊँचा उठकर जीवन का मधुर संगीत गाऊँ,
जीवन में गुड़ का मिठास रहे ये प्रयास हो,
बस ऐसे पतंग की तरह मैं आनंदित हो जाऊँ।
कटना फटना टूटना हकीकत का ज्ञान हो,
फिर भी ऊँचा उठने में सदा ही मान हो,
नभ की ऊँचाई जाकर खिलखिलाहट भर दूँ,
बस इतना ही मेरे मन में सदा सम्मान हो।
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