आकाश

आकाश

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 13 Jun, 2022 | 1 min read

अपनी कल्पना की मैं खूब ऊँची उड़ान चाहती हूँ,

अपनी सोचों का आकाश सा विस्तार चाहती हूँ।


चाहती हूँ छू सकूँ उन्नति के शिखर को सदा ही मैं,

 जमीन से टिके रहकर जमीन का आधार चाहती हूँ।


नभ की तरह विस्तृत होती जा रही है आकांक्षाएं,

मैं उन्हें पाकर जीवन से  भरपूर प्यार चाहती हूँ।


तारों की तरह चमकना चाहती हूँ मैं नीले गगन में,

अपने अस्तित्व का मैं स्वयं से स्वीकार चाहती हूँ।


एक टुकड़ा बादल का बन जाऊँ नीले गगन का,

मैं आसमान के एक कोने पर अधिकार चाहती हूँ।


आकाश में अपनी एक अलग पहचान बना लूँ,

अपनी पहचान बनाकर खुशियाँ बेशुमार चाहती हूँ।

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Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

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  • AM · 1 year ago last edited 1 year ago

    दिल छू लेने वाली रचना.....❤❤

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