आज फिर एक बार

आज फिर एक बार

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 24 Aug, 2021 | 1 min read

आज फिर एक बार अपने ही बनाये 

आवरण को तोड़ जीने की कोशिश की।

और आज फिर उम्मीदों की बड़ी गठरी

ह्रदय पर लेकर चल पड़ी।

पता था इसके बोझ को सहन नही कर पाऊँगी,

पता था कि तकलीफ फिर से पाऊँगी।

पर मैं भी जिद्दी बड़ी,बड़ी मनचली,

एक बार फिर से खुद को चोट पहुँचाने में कसर नही छोडी।

एक बार फिर ह्रदय आहत हुआ ,

मन व्यथित हुआ।

एक बार फिर गिरी ,फिर खुद को संभाला।

खुद से वादा किया कि 

अपेक्षाओं का बोझ नही उठाऊँगी।

फिर से उम्मीदों से मन को नही भरमाऊँगी,

और न ही मिथ्या कल्पना से खुद को लुभाऊँगी।

पर एक सत्य यह भी है,

फिर से खुद को झुकाउंगी।

एक बार फिर से मुस्कान लाने के लिए अपनों के चेहरे,

टुटूंगी बिखरूँगी और समेट जाऊँगी।

मन की चोट को परे धकेल,

अश्रुपूरित नैनों संग होठों पर मुस्कान सजाऊँगी।

अन्तर्द्वदों से लड़ते हुए 

शिकायतों के पुलिंदे को बंद कर,

जीने के लिए एक नया सबक सीख जाऊँगी।

और हर चोट के बाद मजबूती से उभर कर मैं आऊँगी।

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