द्वंद

द्वंद

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 03 May, 2022 | 0 mins read

अंतर्मन में हर वक़्त चलती है द्वंद,

कभी सोच प्रखर होती कभी मंद,

चिंतन मनन करके थक जाती हूँ,

सोचों के दरवाजे होते सदा ही बंद।


आत्मचिंतन से मैं स्वयं को जानती,

अपनी कमियों को भी पहचानती,

मिलती हूँ स्वयं से मैं अपने मन में,

खुद से द्वंद में कभी मैं हार जाती।


अंतर्मन जाने मेरे मन के सारे राज,

भटक रहा मन कैसे हो पूरे काज,

द्वंद जो मेरे मन में चलते रौनक फीके,

जैसे संगीत बजे हो बिना कोई साज।


द्वंद सारे मन के मैं चली भुलाने,

लक्ष्य जीवन का पूर्ण हो नही बहाने,

चिंतन से मैं अपनी राह स्वयं बनाऊँगी,

एक नया मार्ग बनाकर दुनिया को दिखाने।


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Ruchika Rai

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