नारी

नारी का जीवन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 05 Oct, 2021 | 0 mins read

प्रेम इसके गहरे तिलिस्म में डूबती गयी,

क्योंकि वह संवेदनशील थी।

उसकी संवेदनशीलता जमाने की चोट खाकर

भी नही कम हो पाई।

उसकी भावुकता ही उसकी हथियार बनी,

चोटों से उबरने का मरहम हर बार बनी।

कभी बेटी,बहु ,पत्नी के रूप में उलझाया,

कभी मित्र ,प्रेमिका के साँचे में सजाया।

हर साँचों में वह ढलती गयी,

अपने अरमान को वह कुचलती गयी।

पर अफसोस यही सालता रहा,

सुकून इसके बाद भी नही मिला।

घाव गहरे,व्यंग्य बाण के पहरे,

दर्द की इंतिहा

फिर भी मुस्कुराता चेहरा।

वाकई ये हुनर कैसे कहाँ से क़ब आया।

जीवन की आपाधापी में

आगे बढ़ने का हुनर कमाल।

उस पर बोलती आँखें पूछते सवाल

ये हुनर बड़ा ही तरीके से आजमाया।

नर्म दिल जरा सी आँच पर पिघला,

झूठे बातों पर उलझा,

सुलझाने का कोई सिरा नजर नही आया।

स्त्री का जीवन ,लाखों उलझन

फिर भी प्रेम का या संवेदना का गहरा साया।

सदा ही मन में रहा।।

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