अपनी लेखनी के स्याही से,
पन्नों को रंगता है।
जुबां जो नही कह सके कभी,
उनको वो बेबाक कहता है।
समाज को उसके सच से
रूबरू करवाता है।
जो मिल नही सकते कभी
उन्हें लेखनी से मिलवाता है।
लेखक आईना बनकर सदा,
हर अच्छे बुरे को दिखाता है।
वह एक आलोचक के रूप में
बुराई को हमारे बताता है।
लेखक मरहम बनकर जख्म
को सहलाता है।
या फिर यूँ कह लें लेखक
ज़ख्म को नासूर भी बनाता है।
लेखक हिम्मत बनकर साथ
सदा ही निभाता है।
या फिर अपने शब्दों से वह
संयम का पाठ पढ़ाता है।
लेखक शांति दूत बनकर
शांति हर जगह करवाता है।
या फिर अपने शब्दों की चिनगारी से,
क्रांति का अलख जगाता है।
लेखक सामाजिक रीतियों से सदा
परिचित करवाता है।
लेखक सांस्कृतिक मान्यताओं का
पाठ सदा पढ़ाता है।
लेखक इतिहास और वर्तमान के
बीच संबंध बनाता है।
लेखक भविष्य को सुदृढ़ करने
का राह हमें बताता है।
लेखक चिंतक बन समाज को
सदा नई दिशा दिखाता है।
लेखक सुधारक बन कभी
बुराइयां के खिलाफ जंग छेड जाता है।
लेखक आईना बन सदा ही,
समाज के हकीकत से रूबरू करवाता है।
Comments
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लेखक के कर्तव्यों का बखान खूब किया गया है रचना में, खूबसूरत कृति
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