अंतर्द्वंद

अंतर्द्वंद

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 19 Jul, 2022 | 1 min read

यह जीवन है जीवन में हैं अनेकों द्वंद,

मन बाहर भीतर चलते रहते अंतर्द्वंद,

उलझनें जब हावी हो जाती हैं कभी,

दिल और दिमाग दोनों हो जाते हैं बंद।


आसान नही अंतर्द्वंदों से उबर पाना,

अंतर्द्वंदों में उलझकर खुद को है बचाना,

कभी योग कभी ध्यान से भटकाये मन को,

हारकर भी जितने का हुनर सीख पाना।


गहरी वेदना उभरती है इन द्वन्दों से,

अंधकार की गहरी खाई झलकती है मन में

हर उलझी गाँठों को सुलझाने की ,

ये जद्दोजहद बड़ी मुश्किल है पार पाना।


ये अंतर्द्वंद कभी स्वयं से नाराजगी दिखाती है,

विवशता की, कोई भी राह नजर नही आती है,

छलावा सा लगता है जीवन का हर पल,

जिंदगी जिंदगी से उलझकर खुशियाँ मिटाती है।

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Ruchika Rai

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