पहली बून्द

पहली बारिश

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 09 Jun, 2024 | 1 min read

सूरज बनने लगा जब 

आग का गोला

तपती धरा

सूखे ताल- तलैया

और खोने लगी है मिट्टी अपनी उर्वरा।

पौधे की हरियाली भी खोई,

पशु-पक्षी भी प्यास से व्याकुल

हो रोई

बारिश की पहली बून्द का धरा पर आना

मन मयूर का आनन्दित हो नाचना गाना।

शीतल कर दे तन और मन का हर कोना।



बारिश की पहली बून्द

धरा की मिटाती प्यास।

किसानों के जुड़ते है इससे आस

मिट्टी की सोंधी खुशबू

दे जाती है अपनेपन का खूबसूरत एहसास।

गर्मी से आतप तन को राहत पहुँचाती

मेढ़क की टर्र टर्र

और झींगुर की झंकार

जीवन को बना जाती है खास।


पौधों में है नए प्राण आ जाते,

हरियाली उनकी मन को भा जाते।

मुस्कान चेहरों की चौड़ी होती

जीवन को खुशनुमा बना देते।

बारिश की पहली बून्द

विरह ताप को कम कर जाती

मिलन की आस मन में है जगा देते।

मयूर थिरकते पंख फैलाएं,

जीवन में धनक प्रेम की बिखराते।

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