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Ruchika Rai
Ruchika Rai 12 Sep, 2022 | 0 mins read

सहज सरल यह है जन जन की भाषा,

पूरी करती यह हम सबकी अभिलाषा,

देवनागरी लिपि से है यह निकल आई,

देश विदेश नाम हो इसकी यह आशा।


शिरोरेखा है इसकी सुंदरता को बढ़ाये,

रस,छंद,अलंकार का शृंगार कर जाये,

स्वर और व्यंजन है इसके रूप अनोखे,

चंद्रबिंदु और अनुस्वार इसको है सजाये।


मुहावरे और लोकोक्तियाँ बढ़ाये मान,

पर्यायवाची और विलोम से हो सम्मान,

संधि और विग्रह का गुण भी रखती,

काश्मीर से कन्याकुमारी तक रहे शान।


तत्सम तद्भव है इसके शब्दकोश में रहते,

देशज विदेशज भी नए शब्द हैं गढ़ते,

कविता ,कहानी ,भजन ,गजल में अभिव्यक्ति,

विदेशों में भी जाकर मन प्राण में बसते।

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Ruchika Rai

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