शिशु

शिशु

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 23 Aug, 2021 | 0 mins read

शिशु सा मन निश्छल निर्मल,

न उलझे कभी जमाने की मायाजाल में।

निष्कपट सरल सहज कोमल,

चले अपनी ही धुन अपनी ही चाल से।

न कोई धर्म जाति की दीवार उन्हें रोके,

न कदम पीछे हो किसी बवाल से।

मस्तमौला जीयें अपने हिस्से का जीवन,

अपने ही चाल ढाल से।

शिशु सा मासूम बन हम मासूमियत को बचायें,

जमाने को अच्छाई का तोहफा दे जाएं।

इंसानियत को बचाने का बीड़ा उठाये,

शिशु सा सरल ह्रदय सबका बन जाये।

शिशु का मन मस्तिष्क है कोरा पन्ना,

उसे मानवीय गुण हैं सिखाए।

जमाने की हर आँच से बचाने के लिए,

उन्हें हिम्मत और हौसलों का सबक दे जाएं।

शिशु सा निश्छल निर्मल मन,

जगत में अच्छाई दे जाएं।

उस अच्छाई की रोशनी से,

बुराई के अंधकार को हम मिटाये।

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