मॉं तुमसे क्या कहूँ,कितनी ही बातें हैं अनकही,
सोचती हूँ तुमने जीवनपर्यन्त दर्द हमारे लिए सही,
मेरे लिए तुमने जीवन के दिन संघर्ष से बताया,
आज भी तेरे हिस्से में संघर्ष देखती ही मैं रही।
जब भी तुम्हें देखती तकलीफ सहकर कार्य करते,
तड़प उठती मन में व्यथा सहकर भी मौन रहते,
बेबसी मेरे मन में अक्सर ये उठा करती है माँ,
तुझे आराम देने के लिए हम कुछ नही कर सकते।
अपनी अक्षमता पर बस इस बात से रोना आता है,
उम्र के इस पड़ाव पर भी मेरा वजूद तुम्हें आराम नही दे पाता है
चाहती हूँ तुम्हारी सारी फिक्र सारी चिंताएं मैं ले लूँ,
पर कहाँ तुम्हारा मन फिर भी निश्चिंतता और सुकून पाता है।
काश की रब मिल जाये तो ये दुआ मैं उनसे मांगू,
हर जन्म में तुम्हारी ममता की छाँव मैं सदा चाहूं,
बस तुम्हारे लिए हर सुख सुविधा मैं मुहैया कर पाऊँ,
तेरे चेहरे पर मुस्कान और मन में सुकून का डेरा बसा पाऊँ।
तुम्हारे ऋण से लगता है कभी उऋण नही हो पाऊँगी,
बन के ढाल नही तुम्हें कभी मैं संभाल पाऊँगी,
बस प्रार्थना है प्रभु से की मुझे वो इतना मुझे सशक्त बना दें,
मैं तुम्हारे लिए एक मजबूत आधारस्तंभ बनकर सदा खड़ा हो पाऊँ।
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