जंग

जंग

Originally published in hi
Reactions 0
194
Ruchika Rai
Ruchika Rai 04 Sep, 2022 | 0 mins read

जंग ये कैसी छिड़ी है,

गलत को सही साबित करने की

होड़ हर तरफ लगी है।

जब जरूरत हो स्वयं की कमजोरी को

हथियार बनाया जाता।

जब जरूरत हो उसको ढाल बनाया जाता।

ये उथल पुथल हर तरफ मची हुई है,

जंग ये कैसी छिड़ी हुई है।


अपनी गलतियों की कोई स्वीकार्यता नही,

सही गलत की मन में रहे कोई बाध्यता नही,

गुनाहों पर पर्दा लगाने के लिए

रीतियों और संस्कारों पर है सदा ऊँगली उठी।

जंग ये कैसी छिड़ी है।


समाजिक मान्यताओं की दुहाई दी जाती है,

धर्म पर भी ऊँगली उठाई जाती है,

अपने बेचारगी का सदा हवाला देकर,

उसकी आड़ में गलतियां छिपाई जाती।

समर्पण और त्याग की बातें बेकार में कही हुई,

जंग ये कैसी छिड़ी हुई है।


समानता का झूठा दम्भ है,

मन में हर पल पलता घमंड है,

प्रेम और सम्मान की बातें बेफजूल है,

हर पल मन में पलता रंज है।

आवारगी को छुपाने के लिए सदा ही,

लानतें मलामतें और सब पर कसा जाता तंज है।


जंग ये हर वक्त छिड़ी हुई है,

सच को सच साबित करने के लिए जद्दोजहद लगी हुई है।

0 likes

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.