आशाओं के डोर थामे चल रहे थे
जिंदगी के मुश्किल भरे रास्तों पर।
मुश्किलें थी बहुत सारी
पथ में कंटक बिछे पड़े थे,
पर मनोबल थी हमारी भारी।
जिद ये थे कि हारना नही है
झुकना और टूटना नही है।
टूट भी गए तो बिखरना नही है,
बिखर भी गए तो खुद को समेट
फिर से खड़े होकर चलना है।
इस तरह ही जिंदगी चल रही थी।
कभी जिंदगी मुझ पर पड़ी भारी,
कभी जिंदगी जीने की होती मेरी तैयारी।
पर अचानक एक तूफान आया,
बवंडर सा उठा,सब कुछ डगमगाया।
हौसले सारे छूट चुके थे,
हिम्मत सारी बिखर चुकी थी।
राह में था घनघोर अँधेरा,
नही कोई राह सूझ रहा था,
जिंदगी जिंदगी से जूझ रहा था।
तभी अचानक आँख खुली,
स्वप्न ने मुझको था डराया।
शरीर से जान निकल रही थी,
आँसूओं से चेहरा भींगा पाया।
एक दृढ़ संकल्प लिया मन में
चाहे कोई भी परिस्थिति आये,
चाहे कदम कितने भी डगमगाये।
बनकर ढाल खड़े रहना है,
अपने परिवार की हिम्मत और सहारा बनना है।
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