पहला प्रेम

पहला प्रेम

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 16 Jun, 2022 | 1 min read

अनछुआ अनजाना अनोखा सा एहसास,

जो नही कभी जेहन में था,

नही कभी आया कोई ख्याल।

प्रेम के लिए लगा बनी ही नही मैं,

लगा नही बन सकती कभी भी मैं  

किसी के लिए मैं खास।

अचानक से

यूँही तुमसे छोटी छोटी गुफ़्तगू की शुरूआत हुई

थोड़ी नोंक झोंक ,थोड़ी शरारतें,

थोड़ी गंभीरता भरी बात हुई।

बातों का सिलसिला चल पड़ा

और एक फिर हमारी जज्बात हुई।

कब दुख सुख दोनों एक दूजे

का महसूस करने लगें,

दिल को खबर ही नही,

जिंदगी बन गए तुम ये हालात हुई।

प्रेम का ये अनोखा एहसास 

सुरूर बनकर मेरे जेहन में छाया।

स्वयं पर मन मेरा इतराया,

गुरूर स्वयं पर ही सदा आया।

दिल की दिल से फासले सारे मिट गए,

चल पड़े दिलों में प्रेम के सिलसिले,

रूह तक समा ही गए,

इश्क इबादत बनकर मेरे जीवन से जुड़ गए।

दुआ है रब से की तू सदा मेरे दिल में रहे,

दूरियों में भी चलते रहे मुहब्बत के सिलसिले।

पाकीज़गी का मन में सदा ही भान रहे,

बस दिल दिल से जुड़ा रहे सदा ही

मन में ये शान रहे।

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Ruchika Rai

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