व्यथा मन की

व्यथा मन की

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 11 Mar, 2021 | 1 min read

व्यथा यही कि आप आँसू भी अकेले बहाते हो,

उन आँसुओं का वजह भी खुद को बताते हो,

कोई आस पास नजर नही आता हैं अपना,

खुद को तिल तिल कर मरता हुआ पाते हो।


ये कैसी तकदीर है जिसे ईश्वर ने लिखी है,

हालाँकि हर आँच को सहने की आपने सीखी है,

व्यथा यही कि आप खुल कर रो भी नही पाते हैं,

मुस्कान खोखली से चेहरे पर आपके दिखी है।


बडी शिद्दत से ये तलब मन में जगी हुई है,

पास कोई हो जो समझे ये आस लगी हुई है,

पर अफसोस इस तलब से अपने दर्द को बढ़ाते हो,

प्रारब्ध ने तुम्हारे हिस्से में ये न लिखी हुई है।


चलो छोड़ दो किसी से उम्मीद यूँही करना,

सब अपनी दुनिया में गुम हुए बैठे हैं।

क्यों किसी को याद दिलाओगे खुद को,

जब वह तुम्हारी तरफ से बेपरवाह हुए बैठे हैं।


खुद के जिस्म को खुद ही चलाना है,

अपने वजूद का बोझ खुद ही उठाना है,

ये रौनकें महफ़िल तुम्हारे काम की नही हैं,

बस चंद पल के लिए तेरे साथ जमाना

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