सुलगती रातें

सुलगती रातें

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 22 Jun, 2021 | 1 min read

तनहाइयों के शोर में मचलती रातें,

अपने ही दर्द में है तड़पती रातें।

दिन के उजाले में भूल जाती है सब,

अंधकार के खौफ में मचलती रातें।

क्या मिला क्या नही सोच का सिलसिला,

अपने इसी सोच से झगड़ती रातें।

सिरा जिंदगी का ढूंढती है सदा,

जिंदगी के इस डोर में उलझती रातें।

अधूरे ख्वाहिशों का शोर बड़ा भारी,

इसी शोर में रोज ही बहकती रातें।

आसान नही खुद को समझाना,

अपने ही आप से समझती हुई रातें।

जंग खुद से चल रही रात दिन,

खुद ही अपने जंग से लड़ती रातें।

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