वो लम्हा

वो लम्हा

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 28 Jan, 2022 | 0 mins read

स्वप्न में जो मेरे सजा है

ख़्वाब बनकर मेरे नैनों में बसा है,

है जिसकी उम्मीद दिल को सदा ही,

है जो मेरे कविताओं में रचा है।

काश वो लम्हा मैं जी पाती।

जिसकी उम्मीद भर से जीवन में उमंग है,

जिसके कल्पना से अनेकों रंग है,

वो जो लम्हा जीवन में आ जाये,

मुस्कान में भी नैनों में अश्क संग है।

काश वो लम्हा मैं जी पाती।

उस लम्हें के लिए सारी बेचैनियां हैं,

वो लम्हा बढ़ाती बेताबियाँ हैं,

जीवन का सार समझाती सदा ही,

उन लम्हों के लिए अलग जी कहानियां है।

काश वो लम्हा मैं जी पाती।

काश किंतु परंतु में हर बार उलझता मन,

रूह में भी तड़प उठती दर्द पूरे बदन,

उस लम्हें से मैं मुक़म्मल हो जाऊँ,

यही ख्वाहिश सदा ही रखे हर जन।

काश वो लम्हा मैं जी पाती।

उस लम्हें में जीवन का संपूर्ण सार हो,

प्रेम हो त्याग हो हर क्षण बहार हो,

उन लम्हों से जीने का एक बहाना मिल जाये,

उन लम्हों पर मेरा संपूर्ण अधिकार हो।

काश वो लम्हा मैं जी पाती।


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