प्रकृति कर रही है हाहाकार,
हो रहा उस पर चौतरफ़ा वार,
अपने स्वार्थपूर्ति के लिए मानव,
नुकसान पहुँचाने को है तैयार।
जंगलों का साफ किया,पेड़ों को काटा,
नदियों पर बाँध बनाकर जल को बाँटा,
विकास के नाम पर होकर के तैयार,
पेड़ पौधों को भी अलग कर छाँटा।
बड़े बड़े आलीशान मकान है बनाये,
कंक्रीटों के जंगल भी है खूब सजाये,
उन्नति के नाम पर भी उसने सदा ही,
हरियाली को देखो खूब है लुटाये।
कल कारखानों से निकलता धुँआ,
वातावरण भी देखो प्रदूषित हुआ,
कूड़े कचरे जो कल कारखानों से निकले,
नदियों के जल को दूषित किया।
प्रकृति के संग जो हुआ छेड़छाड़,
दिया उसने चौतरफ़ा देखो बिगाड़,
मौसम में देखो हो रहा असंतुलन,
कारण है मानव का प्रकृति से खिलवाड़।
चलो अब भी प्रकृति को हम बचायें,
व्यर्थ में हम जल को नही बहाये,
ईंधन का कम उपयोग करें सदा हम,
सौर ऊर्जा को ही प्रयोग में अब हम लाएं।
हरित धरा का निर्माण सदा ही करें,
अपने आस पास पेड़ पौधे चलो लगाएं।
अपनी आदत में हम शुमार करें प्रकृति संरक्षण,
तब जाकर हम इस धरा के अस्तित्व को बचा पाएं।
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