ख्यालों के दायरे

ख्यालों के दायरे

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 08 Feb, 2022 | 1 min read

वो सुरमई सी मौन शाम,

बारिश से धुला हुआ नीला स्वच्छ नभ,

झिटपुट बल्बों से झाँकती पीली रोशनी

अँधेरों को रोकती,

नीरवता को तोड़ती,

घरों को लौटती,

ख्यालों के दायरे में चुपके से आती

वो शांत सी मौन शाम।


बाजारों की चहल पहल को रोकती,

बच्चों के झुंड को समझाती,

घर के देहरी पर इंतजार करती

व्यग्रता और व्याकुलता 

से भरी हुई

अपनापन के साथ

ख्यालों के दायरे में चुपके से आती

वो मद्धम सी प्यारी शाम।


यादों के दरीचे से झांकती,

कुछ अविस्मरणीय लम्हों को,

प्रिय के इंतजार में

पलक पाँवड़े बिछाए,

वो घर की गृहलक्ष्मी,

उसकी मनोदशा को समझती

ख्यालों के दायरे में चुपके से आती

वो प्यारी सी मनोरम शाम।


रूह को तडपाती,

मिलन को छटपटाती,

चाय की चुस्की संग में लेने को उतारू

घर के आँगन में चौबारे पर

तुलसी पर दीपक जलाती,

ख्यालों के दायरे में चुपके से आती,

यह प्यारी सी मनमोहक शाम।

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Ruchika Rai

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