हे हंसवाहिनी पद्मासिनि
आशीष हमको दे।
अपने ज्ञान की ज्योति से
भारत भूमि रोशन करें।
संकुचित भाव और तिमिर गहरा
अज्ञानता का है लगा पहरा
तोड़ के इन बेड़ियों को
जग को प्रकाशित करें।
हे हंसवाहिनी पद्मासिनि
आशीष हमको दें।
निज राष्ट्र के उत्थान हेतु
निज लेखनी सबल हो।
अपने ही लेखनी से हम सदा
क्रांति का जोश भरें।
हे हंसवाहिनी पद्मासिनि
आशीष हमको दें।
कुप्रथा की बेड़ियाँ
कदम को अवरुद्ध करती
ऊँच नीच के चक्रव्यूह में
उलझा कर कदम रोकती।
इन बेड़ियों को तोड़ हम आगे बढ़ें।
हे हंसवाहिनी पद्मासिनि
आशीष हमको दे।
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