मानवता का मर्म यही सदा दूसरों के लिए काम आये,
इंसानियत का कर्म यही सदा दूसरों का भला कर जाये।
दुख में सुख में सदा साथ रहे सब आपस में मिलजुलकर,
मन प्रसन्न हो शांति और सुकून सदा ही हमें मिल पाये।
मानव जीवन तभी सफल जब हम गिरे को उठा सके,
हँसी की फुलझड़ियाँ छोड़े और सब गम अपने भुला सके,
कदम लड़खड़ाये जिनके उनका हम सहारा बन जाये,
छोटी छोटी गलतियों को भुला हम बैर मन से मिटा सके।
इंसान वही जिससे सब आपस में मिलना चाहे,
दिल से जुड़कर अपनी व्यथा सब कहना चाहे,
साथ साथ रहकर सभी अपनी ख़ुशियाँ बाँटे,
नफरत भुला सब मिलजुलकर सदा रहना चाहे।
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