जाने देना या थामे रखना में चयन
करना हो अगर
जाने देना ही चयन करना।
मुक्त करने या बंधन में रखना
चयन करना हो
मुक्त करना ही चयन करना।
क्योंकि जाने वाला जाता ही है
या तो कुछ सिखलाकर जाता
या कुछ सीख कर ।
सीखने और सिखलाने की प्रक्रिया में
स्वयं को बचा लेना।
क्योंकि स्वयं को बचाकर ही
तुम किसी और के लिए कुछ कर सकते।
भावनात्मक और प्रयोगात्मक होने के बीच
खुद को सहेज लेना।
व्यावहारिकता और अव्यावहारिकता के
बीच चयन जब हो जाये जरूरी
कभी कभी दिल की जगह
दिमाग की भी सुन लेना।
रिश्तों,जुबान या फिर व्यवहार में
जब भर जाए विष।
तब उससे स्वयं को आजाद करने के लिए
भले कितने भी कठिन फैसले से हो गुजरना
पर निर्णय से पीछे नही हटना।
क्योंकि यह धीमा जहर खोखला
कर देता है
सिर्फ तन को ही नही मन को भी
और खत्म कर देता है जिजीविषा।
जबरदस्ती से पकड़ने से बेहतर है
खुशी से आजाद करना।
या फिर मन को समझाकर आजाद होना।
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