मजदूर

मजदूर दिवस पर

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 01 May, 2021 | 1 min read



पैरों में फटी पड़ी बिवाई,

हाथों में पड़े हुए छाले,

माथे पर पड़ा हुआ बोझ,

जिंदगी से करता हुआ संघर्ष

कहाँ देता है सबको दिखाई।

जून की तपती दुपहरी हो,

पूस की कड़कड़ाती हुई ठंड

बरसात के भरे हुए कीचड़,

आराम कहाँ उन्हें मिल पाई।

दो रोटी के जुगाड़ में लगे हुए,

पेट पीठ सटे हुए ,

परिवार की जिम्मेदारी उठाने के लिए,

सारे दर्द सारी व्यथा उन्होंने उठाई।

लिंग जाति का भेद नही,

रंग रूप का कोई विभेद नही,

गरीबी को भगाने के लिए 

उन्होंने अपनी सारी मेहनत लगाई।

अपने कर्म से तकदीर को बदलने 

अपने परिश्रम से हाथों के लकीर मिटाने,

जिम्मेदारियों से लड़ते हुए सदा,

उन्होंने जिंदगी की हर मुश्किल मिटाई।

ये ऊँची ऊँची इमारतें दिखती,

ये लंबी चौड़ी सड़कें जो नपती,

ये विकास की बड़ी बड़ी बातें जो सुनती,

वह उनके श्रम की कहानी है कहती।



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