जीवन के रहस्य को कौन समझ पाया है,
जीवन के रहस्यों ने बड़ा उलझाया है।
जाने अनजाने ही जीवन दुख पाता,
दुश्वारियों से जीवन कठिन हो जाता,
अनसुलझी पहेली सी लगे जिंदगी ,
जीवन का रहस्य कहाँ सबको समझ आता।
कर्म और प्रारब्ध का मेल सब बताते,
कर्म कौन सा यह कभी समझ नही पाते,
रहस्य कर्मफल का नही सुलझाते,
जो जितने सच्चे सरल वही चोट खाते।
दृष्टि के रहस्य को भी कौन समझाए,
जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि यह बड़ी तड़पाये,
बुराई में भी अच्छाई ढूंढते ढूंढते
यह दिल अचानक से शून्य में पहुँच जाये।
शरीर की नश्वरता भी सदा ही उलझाए,
आत्मा है अमर देखो यह सभी बतलाये,
शरीर और आत्मा के रहस्य को जो समझ जाये,
जीवन उसका सरल उसे सदा लग पाये।
अपेक्षा और उपेक्षा सदा दर्द देता है,
इसे जो समझ ले वह खुश रह लेता है,
इस रहस्य को समझकर सदा ही,
जिंदगी खुशनुमा रंग में स्वयं को रंग लेता है।
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