प्रेम क्या है

प्रेम

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 14 Feb, 2022 | 0 mins read

मिलन और जुदाई के एहसास के बीच,

पास होने या न होने के बीच,

पूर्णता और अपूर्णता के बीच,

पाने और खोने के बीच

देह और मन से होते हुए रूह के बीच,

प्रेम सदा ही तीव्रतम रहा है

कल्पनाओं में।

प्रेम की गहराई ,प्रेम के लिए बेकरारी

प्रेम के लिए तड़प,

उसके अपने पहुँच से दूर होने में ज्यादा है।


प्रेम जीवन में होना जीवन को पूर्ण करता,

यह समुंदर से शोर भरे जीवन में

शीतल मंद पवन है

यह अँधेरी रातों में जुगनू है।

यह पथरीले रास्तों में नरम फूलों की सेज है।

प्रेम ही हमारे होने का अस्तित्व को

सार्थक करता है।

वरना अस्तित्व की सार्थकता बेमानी है।


प्रेम भड़कती आग में पानी का फुहारा है,

प्रेम जैसे मुँह में घुलती मिठास है।

प्रेम दर्द में मरहम है

प्रेम अकेलेपन का साथी है।

प्रेम होठों का मुस्कुराहट है

प्रेम आँखों का आँसू भी है।

प्रेम ही जीवन का सुख सार है

उसके बिना लगे सब कुछ बेकार है।

प्रेम से हम हैं प्रेम से आप हैं

वरना प्रेम बिना बेरंग संसार है।

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