नारी

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 01 Nov, 2022 | 0 mins read

नारी तेरे जीवन क़े रूप है अनेक,

किसी को मंगलसूत्र प्रेम रूप लगे,

किसी के गले का फंदा समान बनें,

चाहत किसी की जरूरत किसी के,

कैसे समझे हम इसका मर्म भेद।


कहीं इसके संग प्यार मनुहार मिलें,

कहीं इसके संग मुश्किलें हजार मिलें,

कहीं यह सजा बन जीवन को दर्द दें,

कहीं इसकी आड़ में पाप अनेक हो,

अनेक स्वरूप खुशी या दर्द अनेक।


कहीं देवी सी प्रतिष्ठित हो पूजे इसे,

कहीं गृहलक्ष्मी बन घर को सँवारे,

कहीं वह प्यार का आधार हो जीवन में,

कहीं नरक सम जीवन को बनाएं,

प्रेमपाश बनें ये या फिर कैद ये देख।


नारी कभी पत्नी बन खूब इठलाये,

अपने होने का मान अधिकार पाये,

कहीं इससे निकलने की चाहत में,

जुल्म अनेकों सहे और कर जाये,

जुल्म की तस्वीरें या प्रेम की लकीरें,

अबूझ पहेली न समझ आये।

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