बदलाव

बदलाव

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 03 May, 2022 | 1 min read

बदलाव की ये कैसी चल रही बयार है,

भाई भाई में बेवजह हो रही तकरार है।


झूठ फरेब का जाल फैलाया जा रहा है,

हर तरफ वैमनस्य की खींचती दीवार है।


एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ है,

सिर्फ दिखावे के लिए ही मन में प्यार है।


दूसरों को नीचा दिखाने में लगे हैं सभी,

इसके बिना जीवन लगता हुआ बेकार है।


संवेदना शून्य हो रही है यहाँ सबकी,

 संवेदनशीलता ही सदा से जीवन सार है।


पीड़ितों को सताने का शौक बढ़ा सबका,

ये कैसा उनके संग हो रहा अत्याचार है।


बदलाव की बयार में न बदलिए खुद को,

मौके के अनुसार बदलना ही व्यापार है।

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Ruchika Rai

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