मानव और पर्यावरण एक दूसरे के पूरक है।मानव के बिना पर्यावरण की कल्पना और पर्यावरण से मानव का अस्तित्व पूरी तरह प्रभावित होता है।
आज जो पर्यावरण में असंतुलन दिख रहा वह मानव के लापरवाही ,उसके जीने के तरीकों में बदलाव,विकास की अंधाधुंध दौड़ में शामिल होने के कारण ही है।
मानव अपनी सुविधा के लिए वृक्ष काट रहा,नदियों पर बाँध बना रहा,तथा अंधाधुंध विकास कर पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है।कंक्रीट की सड़कें बहुमंजिली इमारतें यह सब पर्यावरण के विनाश में सहयोगी बन रहे हैं।
इसलिए यह जरूरी है कि मानव अपने रहन सहन के स्तर, जीवन शैली में सुधार लाये ताकि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।अपने घरों में किचन गार्डेन बनाना,गमलों में ही सही पौधे लगाना, मनी प्लांट जैसे पौधों का प्रत्येक घर में होना जरूरी है।तुलसी का पौधा जो एक औषधि के रूप में कार्य करता है और धार्मिक दृष्टिकोण से भी उसका महत्व है उसे प्रत्येक घर में जरूर होना चाहिये।
प्लास्टिक पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाया जाय,पैकेट वाले सामान जिंनके पैकजिंग में प्लास्टिक का उपयोग होता उस पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाई जाये।
ट्रेनों बसों से यात्रा करने वाले लोग प्लास्टिक की बोतलों में पानी खरीदकर फेंक देते और शहर से दूर इलाके में फेंक देते वह भी काफी नुकसानदेह है।
इस प्रकार छोटी छोटी आदतों में सुधार करना बहुत जरूरी है ,ताकि पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाया जाय। रीसाइक्लिंग कर पुनः सामानों का प्रयोग किया जाय,जल को व्यर्थ न बहाया जाय, वर्षा के जल के भंडारण की समुचित व्यवस्था की जाय।
साथ ही साथ वृक्षारोपण पर विशेष बल दिया जाय और यह सुनिश्चित किया जाय कि प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवनकाल में एक पेड़ अवश्य लगाएं और इसके साथ ही अगर कोई वृक्ष काटे जा रहे तो उसके बदले में भी वृक्ष लगाए जाएं।
पर्यावरण को शुद्ध स्वच्छ रखने के लिए कम से कम गाड़ियों का प्रयोग ,जरूरत पड़ने पर ही उनका प्रयोग किया जाए तथा तेल के बदले गैस की गाड़ियों का प्रयोग किया जाय।
मानव अगर चाह ले तभी वह पर्यावरण को सुरक्षित कर सकता है
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