प्रेम

प्रेम की अभिव्यक्ति

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 06 Jul, 2021 | 1 min read

प्रेम का होना ,महसूस करना और व्यक्त करना....बड़ा दुरूह सवाल होता है,जिसका मिलता नही कोई जबाब

सामाजिक मान्यताएँ,मानक आकलन करते हैं,

मूल्यांकन करते हैं,फिर निर्णय सुनाते हैं।

यह सही नही हैं फलाने के लिए।

प्रेम स्वतः पनपता हैं ,यह सत्य है किंतु उसको बढ़ने से रोकना होता है।

जिम्मेदारियों के बीच में,उसे रोकना होता है,

सामाजिक मान्यताओं के कारण।

प्रेम का होना और उसे व्यक्त नही करना।

खुद के अंदर ही अपने खोल में समेट लेना,शायद जरूरी होता है।

भावनाओं के तीव्रतम ज्वार,

जब उठते हैं,

मन को बेकल करते हैं,

खुद से ही प्रश्न करते हैं

और पर्याप्त उत्तर के लिए तरसते हैं।

पर नही होता कोई जवाब सिवाय सब्र के....या विरोध के

मगर विरोध किससे? 

क्यों?

किस दम पर?

बड़ा कठिनतम है ये,प्रश्न के ऊपर उठा एक प्रश्न।

इसलिए मन के कोने में दफन कर लें

सारे जज़्बात।

महसूस करें ,

आनंदित हो,

कल्पना करें,

पर व्यक्त नही कभी करें

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