रिमझिम रिमझिम पड़े फुहार,देखो छाई है बहार,
काले काले मेघा गरजे,कर रही है हमें पुकार,
बिजली चमक रही है चम चम ह्रदय में उठे उल्लास,
देखो सजनी चली सावन में साजन पास कर शृंगार।
हरियाली है धरा पर छाई जैसे प्रकृति ले अंगड़ाई,
धरा अम्बर लगे सुशोभित जैसे खिली हो तरुणाई,
गोरी के हाथों में सजती है मेहंदी की लाली,
हाथों में हरी हरी चूड़ियाँ खनके मोहक मन भाई।
टिप टिप बरसे बूँदें धरती की है तपन बुझाई,
गर्मी से आहत मन को बारिश की बूँदें राहत पहुँचाई,
पशु पक्षी भी राहत पाते सूरज की तपन से
शीतल बयार मंद मंद बहती मन की प्यास बुझाई।
पानी पानी धरा हो गयी है अद्भुत छवि मन भाई,
खेतों की क्यारियों में पानी किसानों के मन आस जगाई,
फ़सलों के लिए अमृत बन गिरती ये जल की बूँदें,
जन जन के मन को उल्लसित कर सदा ही राहत दिलाई।
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