अहम के टकराव में,
समर्पण के अभाव में,
धैर्य की कमी से,
रंगीन दुनिया की दिखावटी प्रभाव में
आज हर जगह दरकते,कसमसाते
टूटते,बिलखते रिश्ते।
अपनी गलतियों का अफसोस नही,
खुद को सही साबित करने की होड़ लगी,
झूठ सच के अंतर्द्वंद्व में,
विश्वास अविश्वास के चल रहे
मानसिक द्वंद में
आई,सी यू में पड़े हुए से
अंतिम साँस ले रहे रिश्ते।
स्व की लड़ाई में,
अपनी बातें सही साबित करने
की हर जगह होती ढिठाई में।
झूठे प्रचार और प्रसार में,
आरोप और प्रत्यारोपों के सार में।
स्वच्छंदता की चाह में,
सहनशक्ति के पथरीले राह में,
दम तोड़ने के हो रहे मजबूर रिश्ते।
पीछे छोड़ते जिम्मेदारियों में,
सुख के गलत परिभाषा की पहरेदारियों में,
प्रेम के पूर्णतया अभाव में,
दूसरे को दिखाने के प्रभाव में,
खुद की परिस्थितियों की स्वीकार्यता
की हो रही कमी से।
बस स्व केन्दित हो रिश्ते
इस बात के तैयार करते जमी से
टूटने को लाचार और बेकरार रिश्ते।
कुछ इस तरह से पास से दूर
जा रहे ये बदलते रिश्ते।
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