परदेश

परदेश के प्रति आकर्षण

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 17 Sep, 2022 | 1 min read

ये विकास की अंधाधुंध भागदौड़,

दिखता नही कही भी कोई ठौर,

शानों शौकत से जिंदगी हम गुजरे,

आगे निकलने की बस लगती होड़।


झूठे नाम और झूठी मिले प्रशंसा,

इसके लिए कार्य में नही रहे शंका,

उच्च शिक्षा का हो उच्चतम स्तर,

पद प्रतिष्ठा में हो बढ़ोतरी ये मंसा।


विदेशों में मिलती है जो सारी सुविधा,

वही सारी मिले नही रहे मन में दुविधा,

आराम तलब सुकून भरा जीवन हो,

हो इसमें नही कोई भी असुविधा।


पूरे विश्व में भारत जैसा नही मिले श्रम,

टूट जाये मन आराम मिलेगा ये भ्रम,

हो सबसे आगे श्रम से बन जाये माहिर,

सदा ही रहे हमारा प्रशंसनीय कर्म।


विदेशों के शानो-शौकत का है ये खिंचाव,

नही बचे अपनी मिट्टी से कोई लगाव,

बस जीवन में पैसों का ही मूल्य रहे,

नही अन्य कोई मन में बचे जुड़ाव।


बेटा विदेश में माँ बाप के मन में अभिमान,

झूठी शानों-शौकत झूठा ही रहे शान,

हर तरफ इसी बात के चर्चे होने लगें,

समाज में बढ़ जाये विदेशी नाम पर सम्मान।


नही गाँव की गलियों में वह ममता मिले,

नही बागों में कोई चाहे जाकर झूला झूले,

नही खेतों की टेढ़ी मेढ़ी पगडंडी रास आये,

नही कोयल के गीत संगीत से मन प्राण खिले।


क्षुद्र देश की राजनीति भी सदा परेशान करें,

आरक्षण की परंपरा से मन में हीनभावना भरे,

अपनी विद्वता का उचित मूल्य पाने के लिए,

कदम स्वयं ही विदेशों की ओर बढ़ वही




जा बसे।

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