ये बेटियाँ

ये बेटियाँ

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 429
Ruchika Rai
Ruchika Rai 24 Jan, 2022 | 1 min read

भीड़ भरी दुनिया में

जब भी हो जाते हैं बेसहारा पिता

या फिर हो जाती हैं अकेली माँ

जब उनका अस्तित्व उन्हें बोझ सरीखा

लगने लगता है।

तभी खुशी से बाँहें पसारकर स्वागत 

करती हैं बेटियाँ।

रख देती हैं कांधे पर हाथ

बन जाती हैं सहारा।

चुपचाप उठा लेती हैं उनकी जिम्मेदारी,

खामोशी से

बिना किसी शोर के।


जब पूरे घर में बुजुर्ग माँ बाप का वजूद

बन जाता हैं बोझ।

जब उनकी खाँसी की आवाज

पडने लगती हैं खलल

बेटों के काम में

जब पूरे एकांत घर में उनका

वजूद बन जाता है व्यवधान।

तब बेटियाँ उन्हें ईश्वर की कृपा

अपने पूर्व जन्म के सत्कर्मों का फल

मानकर स्वीकार लेती हैं।

मुस्कुराते हुए,

उनके दम से ही रौनक लगती हैं

उनके घर में।


हारी बीमारी का सुनकर

बुजुर्ग माँ पापा का

तड़प उठती हैं वो

नींद आँखों से ओझल हो जाती हैं उनके

दौड़ उठते हैं उनके कदम

उनको देखने को

उनकी तीमारदारी को

अगर कभी ऐसा न कर पाई तो

फ़ोन की हर आवाज पर चिहुंक उठती हैं

उनके अच्छे होने की खबर में प्रतिक्षारत्त

ऐसी होती हैं बेटियाँ।


पिता पुत्र या फिर माँ बेटे के बीच

संवादहीनता की स्थिति में

पुल बनकर बहु रूप में आती है

ये बेटियाँ

बड़े प्यार से मनुहार उनकी हर जिद को

उनके हर क्रोध पर 

स्नेह के छींटे लगाती हैं

ये बेटियाँ।

जहाँ जिस रूप में रहे

उस रूप में प्रेम की बारिश करवाती 

सदा ये बेटियाँ।


0 likes

Support Ruchika Rai

Please login to support the author.

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.