मरती संवेदनायें

मर रही संवेदनाएं

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 01 May, 2021 | 1 min read




विकराल काल हावी हो रहा,

हिम्मत नही प्रभावी हो रहा,

हर तरफ भय का वातावरण,

 रात और स्याही हो रहा।


अहम के घोड़े पर सवार सभी,

नही सुनते मनुष्यता की पुकार सभी,

हर तरफ दिख रहा त्राहिमाम ,

फिर भी छीनते सुकून और करार सभी।


हो रही हावी हर जगह कालाबजारीयाँ,

भरने को आतुर सभी हैं तिजोरियाँ

मृत्यु के इतने पास होकर भी कहाँ

छूटती हैं सभी की मक्कारियाँ।


दूसरे के दर्द से कहाँ फर्क पड़ रहा,

देख दूसरे को कहाँ कोई तड़प रहा,

मर रही है संवेदनाये देखो यहाँ सभी,

इसलिए हवा में भी जहर घुल रहा

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