मन

मन

Originally published in hi
Reactions 1
218
Ruchika Rai
Ruchika Rai 11 Jan, 2022 | 0 mins read

मन को सहेजने के लाखों जतन,

फिर भी हर बार बेबस हुआ मन,

खींचे जाता है उस शहर की ओर,

जिस शहर में तुझे निहारे नयन।


अब तो घर मेरा मुझको सूना लगे,

तेरे साँसों की खुशबू बिन अधूरा लगे,

तेरे पास रहने की तलब है लगी,

घर की सूनी दीवारें सूनी दास्तां कहे।


सूने घर की खिड़कियों से दिखता नही,

बेजुबान बन गया दिल मचलता यही,

मन को संभाल ले काश हम यहाँ

देख कर हाल ए दिल कोई समझता कही।


बस अब हो गया मन को सहेजना बहुत,

सूने घर की रौनक बढ़ाओ मेरी जरूरत,

मेरी पायल, चूड़ी बिंदिया पुकारती,

आ जाओ बेचैनियों को मिल जाये फुरसत।

1 likes

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.