जिंदगी किसी दिन फुरसत मिले तो
जरा मिलना
थोड़ी अपनी ,थोड़ी बेगानी
कुछ गुफ्तगू करनी है तुमसे।
बताना है तुम्हें नही आसान होता
अपेक्षाओं के बोझ को उठाना।
जिंदगी किसी दिन फुरसत मिले तो
जरा मिलना।
थोड़ी शिकवे शिकायतें जो मेरी हैं
स्वयं से,जतलानी है तुमसे
संवेदनशीलता जो हावी हैं मन पर
कैसे अक्सर मेरे तकलीफ की वजह बनती।
जिंदगी किसी दिन फुरसत मिले तो
जरा मिलना।
बतानी है तुम्हें, कैसे अपनों की
उपेक्षाओं के बोझ को सहकर
फिर भी जिंदगी गुजारते हैं हम।
जो मेरे लिए रहे सदैव रहे खास,
उनके सर्द को देखकर फिर भी मुस्कुराते हैं हम।
जिंदगी किसी दिन फुरसत मिले तो
जरा मिलना
बतानी है स्वयं को कैसे सांत्वना देकर
स्वयं ही कैसे बहलाते हैं हम।
बतानी है तुम्हें की हर सर्द रवैया
कितना दर्द देता है मुझको
फिर भी तुम्हें मिसाल-ए -जिंदगी बनाकर
बिताते हैं हम।
जिंदगी बस एक बार मुझसे मिलना,
जीना किसे कहते हैं
ये स्वयं को समझाने है मुझे।
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