आस

आस

Originally published in hi
❤️ 0
💬 0
👁 429
Ruchika Rai
Ruchika Rai 24 Dec, 2022 | 0 mins read

क्यों कभी कभी हमारे हिस्से की धूप

हम तक नही पहुँचती है

और जीवन में सर्द हवा के थपेड़ों की तरह

दर्द पहुँच जाता है।

और फिर तबाहियों का सिलसिला

सब कुछ खत्म करने पर माद्दा हो जाता है।


होती है खत्म सबसे पहले हिम्मत और

शून्य तक पहुँचकर शून्य में विलीन

हो जाना चाहता है ये मन

और फिर खत्म होती है उम्मीद और उम्मीद

खत्म होने के बाद शून्य भी शेष नही रह

पाता है।


क्यों कभी कभी हमारे हिस्से की धरा

बंजर सी हो जाती है,

और उस बंजर धरा में नही पनपते

कोई एहसासात नही कोई ख़्यालात।

और धीरे धीरे नमी के अभाव में खत्म

होने लगते हैं सारे ही जज़्बात।


मगर धूप हमारे हिस्से की हमें मिली

और धरा हमारे हिस्से की उर्वर बनें

उसके लिए होते हैं सारे प्रयत्न।

दुआ,प्रार्थना,मन्नत सब कुछ किये जाते,

मगर सबसे जरूरी होता प्रेम

और रिश्तों में उसी प्रेम की तलाश में

हर वक़्त भटकता है मन।

एक अंतिम आस के संग।

0 likes

Support Ruchika Rai

Please login to support the author.

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.