प्रकृति

प्रकृति

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 12 Jul, 2021 | 1 min read




गहन तिमिर को चीरते,

रश्मि किरणों का आना।

आह्लादित कर देता मन को,

मन में एक आस का जग जाना।

प्रकृति का शाश्वत नियम यह,

परिवर्तन जग का जाना जाना।

मंद मंद समीर बह रही,

मन में एक उल्लास जग रही।

शीतलता का आभास ह्रदय में,

तप्त अगन का थम जाना।

बारिश की बूँदें जब आती,

तन मन को है ये भींगाती।

बतलाती जीव जगत को

जल को कितना महत्वपूर्ण माना।

धरा में छाई हरियाली,

लगे सुहावन हर डाली।

खेतों में सोना उपजे,

चिड़ियों का चहचहाना।

निशा पहर विस्तृत नभ में,

दिखे जो तारों की बारात।

चाँद कोने में खड़ा मुस्कुराता,

जैसे हो साक्षी बना अँधियारा रात।

ये नभ और धरा का मिलन,

क्षितिज को छूने को आतुर मन।

डूबता सूरज जैसे प्रतीत हो,

जैसे आग का गोला,

छुप रहा दूर पहाड़ी के पीछे।

अपने प्रियतम से मिलने को,

अपने ही घर के अंदर,

जगत को भूले।

प्रकृति का यह नयनाभिराम दृश्य,

सम्मोहित करता है मन को।

जैसे प्रियतम प्रिय से मिलन को,

भूले सारा जग 

आँखें भीचें।



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Ruchika Rai

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