ख्वाहिश

मानव मन की ख्वाहिश

Originally published in hi
Reactions 0
649
Ruchika Rai
Ruchika Rai 26 Mar, 2021 | 0 mins read




पड़ी है चोट जब तभी तो मैं जगी हूँ,

ठोकरों के बाद ही मैं संभली हूँ,

जिंन्दगी का तजुर्बों से सीखा बहुत कुछ

खुद ही गिरकर खुद ही उठी हूँ।


नही है ख्वाहिश कोई मुझको उठाये,

गिरूँ जो मैं तो आगे बढ़कर मुझे सँभाले,

ख्वाहिश यही कि मेरी हिम्मत मजबूत हो,

मेरी मुश्किल का हल नही दूसरा निकाले।


नही चाहती कि दया दृष्टि कोई दिखाये,

ख्वाहिश यही की मुहब्बत कर वो जाए,

मेरे हौसलों की ताकत हो इतनी की

खुदा भी देखकर अचंभित हो ही जाए।


फूल की तरह मैं खुशबू फैलाऊँ,

मैं सदा जरूरत पर किसी के काम आऊँ,

टूटकर सँवरने का क्रम हो कुछ ऐसा,

जैसे पतझड़ के बाद बसंत आये।


हो तिमिर घना तो मैं रोशनी लाऊँ,

अँधेरे को चीरकर प्रकाश फैलाऊँ,

हो देखकर अचंभित हो सब इस तरह,

मैं जगत में अपना स्थान हूँ बनाऊँ।


0 likes

Published By

Ruchika Rai

ruchikarai

Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

Please Login or Create a free account to comment.