रात का सन्नाटा

रात का सन्नाटा

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 12 Apr, 2024 | 1 min read

रात के सन्नाटे में प्रश्नों का यह कैसा शोर,

क्या सही,क्या गलत

कौन अपना,कौन पराया

चल रहा ये कौन सा दौर।


विवशताओं पर मन व्याकुल,

परिस्थितियाँ करती हैं आकुल,

धैर्य का होता है ह्रास

क्यों नही सब कुछ हो रहा मनोनुकूल।


दबे पाँव मन में उठता एक ख़्याल,

कौन समझ सकता है समय की चाल,

कल तक जहाँ घुप्प अँधेरा था

आज उठती रोशनी पर चल रहा बवाल।


पुनः मन को यथार्थ से दो चार कराया,

कल और आज में फिर फर्क दिखलाया,

असहनीय वेदना जो मन में थी पलती,

उसके सुखद परिणाम को समझाया।


रात के अंधियारे में मन में फूटा प्रकाश,

बढ़ने लगा फिर से एक विश्वास,

समस्या और समाधान संग-संग ही चलते,

मिटाना होगा मन से अविश्वास।

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