खलिश

खलिश

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 21 Sep, 2022 | 1 min read

अनकहे शब्दों की ख़लिश दिल को सताती,

मनों बोझ दिल पर देखो कैसे है लद जाती।


ये बेचैनियों का सबब नही हमसे कोई पूछे,

दिल की बात जुबां पर नही है कभी आती।


संभाले नही सम्भलता है ज़ज्बात दिल के,

दिल की धड़कनों को ये सदा हैं बढ़ाती।


मिलन की आस और चाहतों की है प्यास,

दिल सदा ही इसमें देखो हमें है उलझाती।


वहम यही की वह सदा से ही रहे हैं मेरे,

दुनियावी चाल को दिल समझ न पाती।


खलिश यही की कैसे तिलिस्म में उलझे,

जो सदा ही मेरे अस्तित्व को बोझ बनाती।

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