नारी सशक्तिकरण

नारी सशक्तिकरण

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 24 Mar, 2023 | 1 min read

जिम्मेदारी संग भर रही उडान नारी सशक्तिकरण की बनी विशेष पहचान।

महिला दिवस और नारी सशक्तिकरण मेरे नजरिये से।

इस महिला दिवस के संदर्भ में मेरी यह ख्वाहिश है कि न् हमे देवी बनाकर पूजा जाये और न ही जलसों और नारों के बीच उदघोष कर भाषण के बीच हमारी बातें रखी जाये एक सामान्य नारी के रूप मे जो मान सम्मान मिलनी चाहिए वह मिले 

लेकिन चंद भाव नारी सशक्तिकरण को लेकर जो मेरे मन मे हैं उसे मैं बताना चाहती हूँ।

आज जब नारी उत्थान की बातें हर जगह हो रही हैं,पुरूष के कदम से कदम मिलाकर चलती स्त्री घर बाहर की दोहरी जिम्मेदारी निभाती हुई स्वयं की पहचान बना रही है।तो इस समय नारी सशक्तिकरण के सरकारी प्रयासों के बीच स्वयं को एक सशक्त और विशिष्ट नारी के रूप में समाज में स्थापित होने के लिए कुछ प्रयास करने जरूरी हैं।

सबसे पहले स्वयं को आर्थिक रूप से मजबूती प्रदान करना जरूरी है,इसके लिए शिक्षा पर विशेष ध्यान ,आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना जरूरी है।

आज के समय में आर्थिक रूप से स्वावलंबी होना ही एक स्त्री को सशक्त बनाने की पहली इकाई है,जिसके बल पर वह अपने घर परिवार और समाज की मदद कर सकती।और सबके विकास में सहयोग कर सकती है।

एक स्त्री को दूसरे स्त्री के प्रति सदैव सहयोग की भावना होनी चाहिए।असली सशक्तिकरण तब ही है जब एक स्त्री दूसरी स्त्री के उन्नति में सहायक बन उसके सहयोग के लिए खड़ी हो।

वह कभी भी ईर्ष्या द्वेष मन में रख दूसरी स्त्री को नीचा दिखाने की कोशिश न करे और न ही उसके विकास से शोक मनाये।

वह अगर सहयोग करें तो खुलकर तारीफ भी करें,मुश्किलों में साथ दें तो कमजोरियों को बताकर उसके दूर करने का प्रयास करे।

तीसरी बात जो सबसे जरूरी है कि नारी उत्थान के मतलब यह नही की हम पुरुष की बराबरी या देखादेखी की भेड़चाल में चलकर उन जैसा ही बनने का प्रयास करें और इसमें सही गलत का फर्क करना भूल जायें।

हो सकता है कि बहुत सारे लोग इस बात से सहमत न हो पर मेरा मानना है कि हमें एक स्त्री के रूप में स्वयं के उत्थान पर केंद्रित रहना होगा न कि पुरूषों की बराबरी का दम्भ भरना होगा।

प्रकृति ने स्त्री पुरूष को पूरक बनाकर भेजा है,तो हमें उसे प्रतिद्वंद्वी बनाकर नही देखना होगा।

हमें स्वयं की सुरक्षा,स्वयं के विकास पर ध्यान देना होगा।

कुछ पुरानी परंपराएं हो सकती हैं कि गलत हो मगर इसका मतलब यह नही की उसके एवज में पश्चिम का अंधानुकरण करें।

रीति रिवाजों ,सभ्यताओं का सम्मान करते हुए हमें स्वयं को दृढ़ निश्चयी और मजबूत बनाना होगा।

सही मायने मे भावनात्मक रूप से दृढ़ होना और वैसा बनाने का प्रयास ही नारी सशक्तिकरण है ताकि हर परिस्थिति में दृढ रहकर सही गलत को परख सही निर्णय ले सके,अपनी असीमित शक्तियों को पहचान कर स्वयं उचित निर्णय ले सके दिखावे के प्रवृति से दूर दिल और दिमाग में स्वयं बैठा कर वह परिवार समाज राष्ट्र के निर्माण में सहयोग कर सके 

सशक्त नारी से बनेगा सशक्त समाज यही सत्य कल था ,कल रहेगा और है आज।



सिवान बिहार

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