आँगन

आँगन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 23 May, 2024 | 0 mins read

याद आता है बहुत वह गाँव का आँगन,

जिसमें किस्से चलते थे खूब मनभावन,

दादी चाची अम्मा की चटपटी सारी बातें

कहानियों से लगते थे बड़े ही लुभावन।


उसी आँगन में बीतती जाड़े की दुपहरी,

सबकी फिक्र ख्याल सबको थी पड़ी,

गर्मी की शामें भी कटती थी वहाँ पर,

रातें डरावनी नही लगती थी कभी बड़ी।


याद आते है वह तुलसी के चौबारे,

जिसके सामने हाथ उठा मुश्किलें हारे,

वह चबूतरे पर टिमटिमाता सा दीया,

उम्मीद बुझने न देता कभी भी प्यारे।


आँगन था हर तीज त्योहार का गवाह,

उस आँगन में हँसने गाने की चाह,

बड़ी याद आते हैं वो सुहाने दिन,

तकती है आँखें उस आँगन की राह।

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