दादी की गुल्लक

दादी की गुल्लक,बचत का साधन

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 17 Nov, 2021 | 0 mins read

देखा था दादी के बक्से में एक गुल्लक,

रखती थी उसमें वह सारे चिल्लर।

ख़ुशियाँ जब हम सब की खरीदनी होती,

मुस्कान चेहरे पर जब बिखेरनी होती,

तो देती थी वो चिल्लर से भरा गुल्लक।

जाते थे हम सब बाजार

लाते थे मनपसंद खिलौने

थोड़ी मिठाई,थोड़े नमकीन

थोड़ी खट्टी मीठी नींबू जैसे गोले।

फिर शुरू हो जाती थी गुल्लक की खोज,

आती थी फिर दादी की खरीद गुल्लक,

जिसमें रखती थी वो चिल्लर।

कभी दादाजी के पॉकेट से निकाले हुए,

कभी सब्जी खरीदकर बचकर आये हुए।

अब आ गया है एक जार एप्प,

ठीक उसकी भी हालत है जैसे दादी की गुल्लक।

बस इसमें पैसे नही सोने रखे जाते,

जिसे कोई चोर नही चुरा पाते।

वो जार एप्प में चिल्लर को सोना बनाते,

उसे सोने के रूप में नही डिजिटल रूप में संभाले जाते।

जब हो जरूरत सोने को निकालो,

बूंद बूंद कर एक बड़ा सा नदी बना लो।

फिर आगे सब कहेंगे,

अरे,ये तो मस्त है,जैसे दादी की गुल्लक।

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