लिखना कहाँ होता आसान

लिखना आसान नही होता

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Ruchika Rai
Ruchika Rai 14 May, 2021 | 1 min read

लिखना कहाँ आसान होता है?

मन की देहरी से कुछ शब्द आकर 

कोरे पन्ने पर सजाते हैं।

पर सजाने से पहले थोड़ा सहमते, थोड़ा रुकते,

थोड़ा कसमसाते हैं।

कही ये राज जो मन के कोने में है दफ़न

वो बाहर न आ जाये।

कही कुछ अरमान जो दबा कर रखे हैं

वह फिर से न उग जाएं।

कही कुछ दर्द जिसे हौसलों की मरहम से

सहलाकर चुप किया है,

वह स्याही के साथ यारी कर पन्ने पर बिखर न जाये।

लिखना कहाँ आसान होता है?

लिखते हैं बस जिंदगी की रंगीनियों को

कुछ सीखो को

कुछ हौसलों को

लिखते हैं मजबूती से खड़े उस रूप को

जो सदा ही प्रेरणा और मार्गदर्शक कहलाये।

मगर डरते हैं सदा ही लिखने से

तमाम उन कमजोरियों को

जिंनके नींव पर ये मजबूती की मीनार खड़ी दिखती।

लिखने से पहले हर दर्द को कुरेद ही देते,

हर ज़ख्म को याद ही कर लेते,

इसलिए ही कहते 

लिखना नही होता है आसान।

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