मायका अब मायका न रहा

मां पापा भाई बहन के बिना मायका मायका नहीं होता खालीपन कहीं न कहीं होती है

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Resmi Sharma (Nikki )
Resmi Sharma (Nikki ) 28 Nov, 2020 | 1 min read

पूरे पाँच साल बाद सिम्मी मायका जा रही थी।बच्चों की पढ़ाई और पति के दूसरे शहर नौकरी करने से वो मायका जा ही नहीं पायी थी ।बहनें थी अगल बगल में ही सो छुट्टियों में आना जाना हो जाता था।एक -एक कर सबके घर छुट्टियों में सब जाते थे !कितनी बार माँ भी आ जाती थी!इसलिए कभी कमी महसुस नहीं हूई।

आज सालों बाद माँ को देखने जा रही सिम्मी बस खिड़कियों से निहार रही थी।पापा तो काफी पहले छोड़कर जा चुके थे अब माँ की तेबीयत ठीक नहीं !पता नहीं मिल भी पाऊँगी या नहीं।सिम्मी की आँखें भर आई।पापा के बाद माँ ही तो थी बस, जिससे उन सब का मायका था पर अब ,नहीं नहीं माँ तुम छोड़ कर मत जाना।

सिम्मी ट्रेन से उतरकर टैक्सी में बैठी और घर की तरफ चल पड़ी। कितने साल बाद वो यहाँ आई है, पर अपनापन आज भी महसुस कर रही है।ये गलियां तो वही हैं पर दुकान बदल गए हैं।पर यादें आज भी ताजा है।माँ के साथ चाट खाना और दोस्तों के साथ मस्ती सब उसके आँखो के आगे आ गए।कितना कुछ बदल गया है।

सिम्मी घर पहूंची पर ये क्या इतनी भीड़ ,कहीं माँ ..नहीं नहीं वो भीड़ को चीरती आगे बढ़ी पर जो होना था हो चुका माँ मुझसे बिना मिले चली गई।हमेशा के लिए दूर हम सब से ।नजरों से दूर पर दिल में तो हमेशा रहोगी माँ।बारह दिन हो गए सब अपने अपने घर चले गए।सिम्मी भी तैयार थी आने को पर वो बारह दिन जिस तरह गुजरे उसे एहसास हो चुका था, माँ बिन मायका नहीं रहता।मामा मामी चाचा चाची सब थे पर वहाँँ होकर भी कोई न था मुझे समझने वाला।

आज सिम्मी से किसी नहीं पुछा बेटा तु क्या -क्या लेकर जाएगी, दामाद जी के लिए ये ले ले,बच्चों के लिए थोड़ा वो ले ले।ना ना करते भी सामान भर ही देती थी।मायके आने के दिन से लेकर जाने तक किसी काम को हाँथ न लगाने देती थी।माँ तो माँ होती है।सिम्मी पुरा घर घुम कर यादों को जैसे आँखों में बसा लेना चाहती थी।क्या पता वो कभी आएगी भी या नहीं,भाई हैं नहीं जो सिम्मी को मायका का सुख देता।

आँखें बंद कर सिम्मी बस टैक्सी में बैठ गई।उसकी आँखें बस बरस पड़ी।वो अब अकेली हो गई उसका मायका अब हमेशा के लिए छुट गया ,क्योंकि उसका मायका तो बस माँ पापा से था और अब दोनों ही छोड़ कर चले गए तो अब कौन सा मायका जहाँ किसी ने एकबार भी न बोला की "हाँ सिम्मी हम सब हैं आती रहना"।

आँसुओं का सैलाब बह चुका था जो रूक नहीं रहा था ये सैलाब मायका छुटने का था ,सिम्मी अपने पति रोहित के गले लगकर आज बहुत रोयी अब वो मायका किसे बोलेगी सब मायके की बातें करेंगे तो वो अब किसके बारे में बताएगी।रोहित उसके दर्द को सिर्फ महसुस कर सकता था कम नहीं क्योंकि वो भी समझ चुका था सिम्मी का "मायका अब मायका न रहा "।

धन्यवाद

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