यही है यही हैं यही है जिंदगी

एक दुःखद घटना

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rekha shishodia tomar
rekha shishodia tomar 18 Jul, 2020 | 1 min read

वो उम्र में कुछ 8 साल का होगा, मटमैली सी शर्ट पर बहुत ही ढीली पैंट पहने, एक टूटी हूई बेल्ट लगाए था जब पहली बार उस पर नजर पड़ी थी।

मैं अपने स्कूटर से रोज़ काम पर निकलता हुआ नाले के ऊपर बनी टपरी पर चाय पीने रुकता था।उसी टपरी के एक किनारे पर वो आते जाते गाड़ियों को देखता रहता।

एक दिन घर से निकला तो मन बड़ा उचाट था, रोज की तरह घर से निकलते हुए वही क्लेश, उसके यहां ऐसा है..हमारे यहां क्यों नही?

इन सवालों के जवाब देते हुए मैं थक चुका था, थक चुका था अपनी जॉब से जिसमे पूरे ऑफिस की गंदगी को साफ करते करते मैं अंदर से सड़ चुका था।

आज मैं उसी जगह पर बैठा था, वो भी उसी जगह बैठा हुआ गाड़ियों पर निगाह रख रहा था। उस दिन जाने क्यों उससे बात करने का मन हुआ।

"ए सुनो, तुम यहाँ क्या करते रहते हो"?

"कुछ नही"

"फिर भी, तुम्हारा घर? मम्मी पापा?""

"यही नाला मेरा घर है, माँ बाप नही है" उसने बड़े ही धैर्य और शालीनता से जवाब दिया।

"मतलब?फिर गुजर बसर खाना पीना"?

"कपड़े कोई ना कोई सज्जन दे देता है, बाकी कूड़ा बीनता हूं..खाने का हो जाता है"

उस समय लगा काश मेरी पत्नी साथ होती तो देखती, जीवन मे संतुष्टि नाम की भी चीज़ होती है, अचानक वो बच्चा मुझे मार्गदर्शक लगने लगा।

"तो आप यहाँ बैठे हुए क्या करते हो"?मैं अनजाने में ही 'तुम' से 'आप' पर आ गया था।

"हम्म मैं गाड़ियों को देखता हूं"

"मतलब"?

"मुझे लगता है बोलेरो गाड़ी उन लोगो को लेनी चाहिए जो जिनका वास्ता ऊबड़ खाबड़ रास्तो से पड़ता है, मारुति से बेहतर गाड़ी मुझे कोई नही लगी..वैसे अब वो बन्द हो गई है..आपको पता है वेगन आर का पुराना मॉडल नए से बेहतर था.."

उसने ढेरो गाड़ियों के कमियां और खूबियां एक साथ गिनवा दी थी..बोलते हुए भी उसकी निगाहे गाड़ियों पर टिकी थी।

तभी एक गाड़ी रेड लाइट पर रुकी वो दौड़ता हुआ गाड़ी तक गया,ड्राइवर से शीशा खोलने की गुजारिश की..कुछ बात की और वापिस आ गया।

"तुम भीख भी मांगते हो"मैंने व्यंग से मुस्कुराते हुए कहा..मुझे अंदर से कुछ आत्मसंतुष्टि मिली थी ये सोचकर कि आखिर ये भी आम इंसान निकला।

पर उसने त्योरियां चढ़ाते हुए कहा"भीख नही मांग रहा था..ये नेक्सन गाड़ी थी..इस गाड़ी में मिलिट्री ग्रीन कलर अभी तक नही आया..वही पूछने गया था..पता चला ये पहला कलर इस शहर में उन्होंने ही लिया है"

"ओह भाई तेरी नॉलेज तो गजब की है.. पर क्यों इन सबमे इतना इंटरेस्ट"?

"बस मेरा बड़ा मन है एक गैराज खोलू, शहर का इकलौता गैराज जहाँ हर मॉडल की गाड़ी रिपेयर हो..आधुनिक तरीको से..गाड़ियों के बड़े बड़े ब्रांड से सीधा काम मिले"

"वाह सोच तो गजब की है..पर पढ़ाई लिखाई भी करनी होगी..काम भी सीखना होगा"

"पढ़ता था मैं, एक भईया पढ़ाते थे..उनकी शादी हो गई तो उनकी वाइफ को पसन्द नही की भईया मुझे पढ़ाये..वो मैं नीच.."

अचानक लगा मेरा बचपन सामने खड़ा हो गया हो..मास्टर जी की माँ ने ट्यूशन देने को मना कर दिया था मुझे..एक गिलास जो मेंन गेट के नीचे बनी खिड़की के रखा रहता..उसी में पानी पिलाकर वहीं रख दिया जाता"

"मैं तुम्हे पढ़ा सकता हूं"

"सच मे कब,किस समय"?

"हम्म, सुबह 6 बजे पढ़ पाओगे बोलो"?

"हां हां.. मैं तैयार हूं"

उस दिन के बाद एक नियम बन गया था..मैं ठीक 6 बजे कॉलोनी के बाहर बने पार्क में उसे पढ़ाता.. वो वाकई बहुत तीक्ष्ण बुद्धि का स्वामी था..जो पढ़ाता उसे तुरन्त कंठस्थ हो जाता।

एक दिन वो पढ़ते हुए बोला"अंकल, किसी गैराज में काम मिल सकता है क्या मुझे.. मैं जल्द से जल्द काम सीखना चाहता हूं"

"देखता हूं क्या कर सकता हूं"?

उसी दिन काम से लौटते हुए मैं परवेज के गैराज पर पहुंचा"

"भाई एक लड़का है बहुत ही होशियार,गाड़ियों का काम सीखना चाहता है..तुम मिलोगे तो हैरान रह जाओगे"

"मियां इतनी तारीफ कर रहे हो तो, ले आना कल..वैसे भी लड़के की जरूरत है"

अगले दिन से उसने गैराज पर जाना शुरू कर दिया..परवेज हैरान था गाड़ियों के बारे में उसकी जानकारी देखकर..

समय अपने रफ्तार से रफ्तार से चल रहा था..मैं गृहकलेश का आदि हो गया था..मेरा रिटायरमेंट नजदीक था।वो लड़का अब स्कूल जाने लगा था..इस बार 12th के एग्जाम देने वाला था।

मेरा मिलना अब उससे कम ही होता,कभी कभी स्कूटर की सर्विस के लिए जाता तो परवेज़ उसकी तारीफों के पूल बांध देता...वो भी मुझे नमस्ते कहकर मुस्कुराते हुए काम मे लग जाता..काम मे क्या लग जाता जबको हिदायते देता.."ऐसा करो" "वैसा करो"

ऑफिस जाने के कुछ दिन और बचे थे..रोज की तरह टपरी पर पहुंचा.. वो जैसे मेरा ही इंतजार कर रहा था।

जाते ही मेरे पैर छुए और बोला"अंकल मेंरे 12th में 95% आए है..आप ना होते तो क्या होता?"

मैंने प्यार से उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा"मैं ना होता तो कोई और होता..पर मेरे गुदड़ी के लाल तुम छुप नही पाते"

"आपका आशीर्वाद है अंकल,मुझे अब पॉलीटेक्निक का एग्जाम देना है..ग्रेजुएशन नही करना..बस उसके बाद अपना सपना पूरा करना है"

"बहुत बढ़िया सोचा.. मैं क्या मदद कर सकता हूं"

"बस सर मेरा आधार कार्ड और आई डी बनवानी है..आपके ऑफिस में ये काम आप करवा दे तो"

"हां हां क्यों नही..अभी चलो मेरे साथ"

"जी मैं आया"कहकर वो अपने अच्छे से अच्छे कपड़े पहनकर आया।

ऑफिस पहुंचकर मैं सीधे साब के पास पहुंचा"साब ये बहुत ही होशियार लड़का है,95%आए 12th में"

"अच्छी बात है अब मुद्दे की बात करो"

"साब वो आधार कार्ड आई डी.."

"कहाँ रहते हो?"

"साब वो चौराहे पर नाला है ना, वहीं पर एक कच्चा कमरा बनाया है"

"हा हा हा..मतलब कोई घर नही तुम्हारा"

"ज..जी "ज..जी वही मेरा घर हैं"..

"ठीक है ठीक है..मां बाप का नाम बताओ"?

वो चुप हो गया,मैं कुछ देर असमंजस में खड़ा रहा और बोला"साब मेरा नाम लिख दीजिए..ये तो अनाथ है"

"अच्छा जी ,तो जरा आप अपने बेटे का नाम बताएंगे"?

मुझे झटका लगा,जोर का झटका..इतने सालों में मैंने कभी उससे नाम पूछा ही नही था..ना उसने बताया..बस तुम, तू और आप से काम चल रहा था।

"क्या हुआ जी?नाम बताइए"?

"न..नाम..नाम तो"मैंने असहाय होकर उसे देखा

"जी मेरा नाम संजय है..संजय क...."

"क्या बात है, माँ बाप का पता नही, अपना नाम पता है.."

"सर जिन्होंने पाला उन्होंने नाम रखा"

"ऐसे तो सरकारी काम नही होता..और तुम..तभी तुम इसके बाप बनने को तैयार हो गए..साला तुम लोग भी..नाम पता नही बनने चले हो बाप..सड़क से उठाया और ले आए"

"साब 12th में 95%"

"हाँ तो? दुनिया के आते है..सबके बाप बनोगे"

"साब आप बदतमीजी कर रहे हो"

"साले सड़क चलते को औलाद बनाता है और हमे तमीज सिखाता है"

"साब मुझे जो कहना है कह लीजिए, पर इस बच्चे का काम कर दीजिए"

"अब निकल तू,ना इसका काम होगा ना तेरा..रिटायर होने वाला है ना तू..देखता हूं कैसे तेरा फंड तुझे मिलता है.."

"साब मत दीजिए मेरा फंड..पर वो बच्चा..बहुत होशियार है"मैं गिड़गिड़ाने लगा था

"होशियार तो है ही..ऐसे ही तुम लोग हर जगह घुस जाओ और फिर भी रोना रोते हो की अन्याय हो रहा है"

मैं इस बेइज्जती का आदि था,पर आज उस लड़के के सामने..मैंने घूमकर देखा वो जा चुका था।

मैं भी सलाम ठोक निकल आया,वो बाहर कहीं नही था।

मैं उदास मन से अपने काम मे लग गया।छुट्टी होते ही मैं तेजी से नाले की तरफ चल दिया।

नाले पर बहुत भीड़ लगी थी..मुझे घबराहट होने लगी दौड़ता हुआ पास में गया।

"क्या हुआ यहाँ"मैंने रुलाई रोकते हुए कहा

"अरे वो लड़का यहां रहता था ना.. पहले अपनी कॉपी किताब नाले में फेंक दी..फिर खुद छलांग लगा दी"

"अरे तो एम्बुलेंस बुलाओ..कोई मदद करो..निकलवाओ रे.."मैं फूट फूट कर रोने लगा था।

"अरे भईया इतने गन्दे नाले में कौन कूदेगा..किसी सफाई कर्मचारी को बुलाओ"

तब तक मैं छलांग लगा चुका था.. अपनी बाहों में उसे लिए मैं बाहर निकला.. वो निष्प्राण मेरी गोद मे पड़ा था..हम दोनों नाले कि कीचड़ में लथपथ थे..यही थी हमारी जगह..हमारी पूरी जिंदगी इसी गन्दगी में सिमटी थी..




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Comments

Appreciate the author by telling what you feel about the post 💓

  • Moumita Bagchi · 3 years ago last edited 3 years ago

    वाह, निःशब्द कर दिया आपने तो, रेखा जी। आज आठ बजने का इंतज़ार रहेगा, ताकि आपका नाम देख सकूँ😜

  • ARCHANA ANAND · 3 years ago last edited 3 years ago

    क्या लिखती हैं आप, नमन आपकी लेखनी को

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